| Song | Heartfelt |
| Artist | Umer Anjum (Feat. JJ47 & Talhah Yunus) |
| Album | Heartfelt [single] |
| Written by | Umer Anjum, JJ47 & Talhah Yunus |
| Produced by | Jokhay |
Heartfelt Umer Anjum Lyrics
मैं कह दूँ नहीं
ज़ुल्म-ओ-सितम सह लिया के और अब नहीं
मैं जानता हूँ तुझे, तू जानती है मुझे
तो और अब नहीं
हम बहुत पीछे से हैं
बहुत गहराई तक
वो फिर सबक बन गया
[X2]
क्या फिर से दिल भर गया?
तू अधूरा कल रह गया
एक मेरा ये टूटा मन रह गया
लिखा है जो तुझ पे लफ़्ज़ हर अयाँ
उसने कहा बहुत कुछ अच्छा मैं देखता हूँ
तुम्हें खुद क्यों नहीं दिखता?
मुझे खुद की परवाह कहाँ जाना
मेरा खुद से परदा नहीं
खुद से बस बातें
ये मुश्किल हैं रातें
रह मेरे साथ अब मैं होश में नहीं
मेरे क्या इरादे ना हालात के मारे
जमकर खुद को संभालें
कितना कुछ हम हारे
फिर भी दिल पुकारे बस तुम्हें
आ फिर हम चलें, क्यों है ये बेक़ुदी?
घूमते हुए, मैं अपनी शहर में चल रहा हूँ
ना अब तेरा मेरा यक़ीन
बरस न अब ये बारिश फिर कहीं
हाँ, मैं क़ैद हूँ यहीं
मेरे एक बार हो के मिलो
बेशक़ बेज़ार हो के मिलो
तेरे हर दर्द की दवा मेरे पास है पड़ी
बीमार हो के मिलो
तेरे नए जूते कहाँ हैं?
कपड़े कहाँ?
तैयार हो के मिलो
तुम्हें कह चुका थोड़ा ज़िम्मेदार हो के मिलो
हमें चार की इजाज़त, तुम ही चार हो के मिलो
तुम बातें करते रहे
और हम चेहरे पढ़ते रहे
हम पे बेअसर थी शराबें
पर तुम सिर पे चढ़ते रहे
ये मदहोशियाँ जो मेरी
दिल का बन चुकी हैं अब दर्द
और जो सह ही न सके ये सब
वो फिर काहे का होगा मर्द
तुम ही आगाज़ों में
तुम ही अंदाज़ों में
एक तुम ही जो ढूँढने से मिल जाए घर के मेरे दराज़ों में
मेरी साँसों में है झलक
तुम गूंजो मेरी आवाज़ों में
तुम्हें खिड़की से नीचे देखता फिरूँ
बैठ के इन जहाज़ों में
मैं कह दूँ नहीं
ज़ुल्म-ओ-सितम सह लिया के और अब नहीं
मैं जानता हूँ तुझे, तू जानती है मुझे
तो और अब नहीं
हम बहुत पीछे से हैं
बहुत गहराई तक
वो फिर सबक बन गया
मैं कह दूँ नहीं
क्या बारिशों की तरह तू नाराज़ है या भूली गली?
क्या यादों में जी रहा हूँ तेरी, पीछे कर के घड़ी?
अब दुनिया दे दिलासे, ये दिल संभले ही नहीं
तू समझे ही नहीं
तू समझे ही नहीं
इस उरूज-ए-फन में ही ग़म कहीं, क्या ग़लती ये मेरी?
तू समझे ही नहीं
कोई परदे ही नहीं
क्या आदतें सब बुरी मेरी? की हिफ़ाज़त तस्वीरों की
डर-ए-दिल पे दस्तकें तो दे रहे काफ़ी देर से
लोग करना चाहें क़ैद सादगी हमारी बेच के
खुद ही उड़ना सीखे अपने ख़्वाबों को धकेल के
आ के सब समेटते वो जा के सब बिखेर दे
हाल-ए-दिल पर लिखते, लोग लफ़्ज़ ये खरीदते
ख़ुदा मेरा परिंदों के ज़्यादा क़रीब है
बादलों की तरह रो पड़े खड़े उम्मीद में
रोज़ करते ग़लतियाँ, रोज़ ही उनसे सीखते
मैं कह दूँ नहीं
ज़ुल्म-ओ-सितम सह लिया के और अब नहीं
मैं जानता हूँ तुझे, तू जानती है मुझे
तो और अब नहीं
हम बहुत पीछे से हैं
बहुत गहराई तक
वो फिर सबक बन गया
मैं कह दूँ नहीं






